NH-40 रतनपुर-केवंची सड़क: मानसून में जलभराव और जंगलों को हो रहा नुकसान

NH-40 रतनपुर-केवंची सड़क: विकास की दौड़ में जंगलों की कीमत और मानसून की चुनौती
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिलों को जोड़ने वाली NH-40 रतनपुर-केवंची सड़क का चौड़ीकरण कार्य तेज़ी से चल रहा है। हालांकि यह परियोजना क्षेत्रीय संपर्क को बेहतर बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई है, लेकिन इसके पर्यावरणीय और मौसमी प्रभावों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
🌲 जंगलों को हो रहा नुकसान
- मौजूदा सड़क की चौड़ाई 7 मीटर है जिसे 10 मीटर किया जा रहा है।
- इस विस्तार के लिए हज़ारों पेड़ों की कटाई की जा रही है, जिससे स्थानीय वन्य जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
- अचानकमार टाइगर रिज़र्व के रास्ते बंद होने के बाद यह मार्ग अमरकंटक जाने के लिए मुख्य विकल्प बन गया है, जिससे ट्रैफिक दबाव और प्रदूषण बढ़ा है।
🌧️ मानसून में सड़क की हालत
- निर्माण कार्य के दौरान जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से बारिश में जलभराव की समस्या सामने आ रही है।
- कीचड़ और फिसलन के कारण यह मार्ग मानसून में चलने लायक नहीं रहता, जिससे यात्रियों को जोखिम उठाना पड़ता है।
- NHAI ने हाल ही में पूरे देश में मानसून के दौरान जलभराव और सड़क की स्थिति पर निगरानी के लिए ड्रोन और AI आधारित सिस्टम लागू किए हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर इनका प्रभाव सीमित है।
🧭 आगे की राह
- परियोजना से मध्यप्रदेश के अमरकंटक, अनूपपुर और शहडोल जैसे स्थलों तक पहुंच आसान होगी, लेकिन पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना भी उतना ही ज़रूरी है।
- स्थानीय ग्रामीणों ने भूमि अधिग्रहण के बाद मुआवज़ा न मिलने की शिकायतें की हैं, जिससे सामाजिक असंतोष भी बढ़ रहा है।



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